मरकाटोला
कहते है भगवान से बड़ा गुरु होता है ,और बिना गुरु के मार्गदर्शन के भगवान भी स्वयं के भगवान होने को प्रमाणित नहीं कर पाये थे |गुरु अर्थात साक्षात "शिव " जिसकी उपासना देव भी करते आये और दानव भी |भगवान भोलेभण्डारी ने किसी के प्रति अन्याय नहीं किया उनकी भक्ति करने वाले देव हो या दानव उसे उसकी भक्ति का उचित फल भी उन्हें दिया |उदहारण के लिए भस्मासुर को ही ले लीजिये ,भस्मासुर एक ऐसा राक्षस था जिसे भगवान शिव जी ने अपना चूड़ा प्रदान किया और उसे वरदान दिया कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह वही भस्म हो जाएगा। भस्मासुर ने उस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करना चाहा भस्मासुर कामुक और वासना से वशीभूतर एक दुष्ट दानव था | शिव जी ने विष्णु जी की सहायता से भस्मासुर को भस्म कर दिया | विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को अपने आकर्षण में बाँध कर नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा, और मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने हाथो भष्म हो गया |संस्कारहीनता और अहंकार केवल विनाश को जन्म देता है |मद में चूर देव हो या दानव या इंसान प्रकृति दंड अवश्य देती है |
वही इसके विपरीत भगीरथ ने भगवान शिवजी की सहायता से अपने पूर्वजो के उद्धार के लिए पवित्र गंगाजी की स्मृति की और वरदान स्वरूप गंगाजी को प्रसन्न किया ,गंगा जी का वेग अधिक था जो पृथ्वी पर आते ही पातळ में समाहित हो जाती ,गंगा जी के वेग को केवल भगवान शिव जी ही रोक सकते थे ये ज्ञात होने पर भगीरथ ने भगवान शिव जी की घोर तपश्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर गंगा को अपनी जटाओ पर स्थान दिया|भगवान शिव ने गंगाजी को शांत स्वरूप में मृतलोक पर उतारा |जिससे भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया और लोककल्याण के लिए आज भी गंगा जी सब को तार रही है | गंगा जी जब गंगोत्री में आई वाहा से नदी का वेग बन गयी जो सात धाराओ में विभक्त हो कर बहने लगी ,यही सप्तऋषियों, वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज का अभुदय हुआ जिन्ह्ने इन स्थानो पर तप कर तीर्थ स्थान बना दिया |यही से सात पहाड़ ,सप्तलोक ,सप्तसागर ,और सप्तजीवन का यथार्थ सामने आया |
जैसा की हम जानते है मानव जीवन ऋषिपरम्परा से जुड़ा हुआ है जिससे गोत्र बना है |यही सप्त ऋषि क्या वर्तमान में भी हमारे इर्द गिर्द है यह सोच ही मुझे धमतरी से २४ किलो मी दूर मरकाटोला ले आया था |
मरकाटोला अपने आप में ही रहस्यमयी स्थान है तीन जिलो (धमतरी ,कांकेर और बालोद )के बीच घिरा यह स्थान अपने आप में अद्भुत है | धमतरी पहुचने के बाद हम मरकाटोला के लिए रवाना हो गए थे |रास्ते में एक टीला मिला जिन पर कुछ मुर्तिया ,घोड़े और सफ़ेद रंग के झंडे लगे हुए थे |पूछने पर पता चला यह किसी बाबा की समाधि स्थल है |
इस थान से दाहिनी औऱ फोरेस्ट बैरियर से ढाई किमी दूर ‘कंकालिन शक्ति-पीठ’ मंदिर स्थित है। यह शक्ति-पीठ बियावान जंगल में एक पथरीली चट्टान पर है। यह साक्षात महाकाली का ही मंदिर है |सड़क से पता ही नहीं चलता कि जंगल के अंदर शक्ति-पीठ है |यहाँ आ कर मैंने महाकाली की पूजा अर्चना की ,मन में अपार शांति तो था ही साथ ही यहाँ के सत्य को जानने की उत्सुकता बनी हुई थी |आदिवासी प्रायः वन देवी ,दुर्गा देवी एवं महाकाली के अनन्य भक्त होते है |जिनके प्रमाण यहाँ दिखाई देते है |कंकालिन देवी की आदमकद प्रतिमा के दोनों पार्श्व में हाथी की मूर्तियाँ, दाहिने पार्श्व में घोड़े की सफेद मूर्ति तथा बस्तर के शिल्प की अनमोल कृतियाँ पूजन स्थल में रखी हुई थी जो अपने आप में अद्भुत तो है ही साथ ही रहश्यमय भी |
इसी मंदिर से लगा सात समाधिस्थल भी बना हुआ है | कहा जाता हैं यह सातो समाधि उन महान बाबाओ की है जो यहाँ रह कर महाकाली की पूजा अर्चना किया करते थे |जो की बड़िया बाबा ,राजाराव बाबा ,लिंगो बाबा ,पागलबाबा आदि के मंदिर के रूप में है।
इन में से राजाराव बाबा महत्वपूर्ण है जो कंकालिन माता की शक्ति-पीठ में पूजा-अनुष्ठान आदि कराया करता था। कंकालिन शक्ति-पीठ के बाजू में बाँयीं ओर ‘बूढ़ा देव’ का मंदिर है। आदिवासी अपने आराध्य देव महादेव को ‘बूढ़ा’ कहा करते हैं। यही मंदिर के प्रागण्य में एक झोपडी नुमा घर बना हुआ है कहा जाता है बाबा अपना भोजन यही पकाया करते थे |
सड़क पर बने देवस्थान से जंगल के अंदर २ किलो मी की दुरी पर राजाराव का असली समाधि स्थल है |सुनसान यह स्थान अपने आप में रोमांचकारी लगता है |कहते है राजाराव को गुरु , महानतांत्रिक,संत ,योगी के रूप में पूजा जाता है |क्वीदंति है की एक बार महाकाली के वीरशक्तियो के दुष्प्रभाव से गाँवो में महामारी होने लगा लोगो के ऊपर घोर विपत्ति आने लगा ,जिसे राजाराव ने स्वयं को देवी में समर्पित कर देवी के महाकोप से गाँवो को मुक्त कराया |यही राजाराव की असली समाधि स्थल हैं |यहाँ आज भी शक्तिया विचरण करती है |यह राजाराव कोई और नहीं महान सप्त ऋषि में से एक है|जिससे गुरु शिष्य परम्परा का अभुदय हुआ है |बैगा ,हो या तांत्रिक यहाँ के आदिवासी लोग आज भी यहाँ आ कर पूजा अर्चना कर देवी देवताओ को प्रसन्न करते है |सात समाधि स्थल सात ऋषि ही है |जो आज भी किसी न किसी रूप में हमारे आस पास प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मौजूद है|